चैते गुड़ बैसाखे तेल,
जेठे पन्थ असाढ़े बेल।
सावन साग न भादों दही,
क्वार करेला न कातिक मही।।
अगहन जीरा पूसे धना,
माघे मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय,
वहि घर बैद कबौं न जाय।।
शब्दार्थ- पन्थ-यात्रा,
मही- माठा, धना-धनिया।
भावार्थ------
चैत में गुड़, बैसाख में तेल,
जेठ में यात्रा, आषाढ़ में बेल,
सावन में साग, भादों में दही,
क्वाँर में करेला, कार्तिक में मट्ठा,
अगहन में जीरा, पूस में धनिया,
माघ में मिश्री और फागुन में चना,,,,,,
ये वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए कष्टकारक होती हैं।
जिस घर में इनसे बचा जाता है,
उस घर में वैद्य कभी नहीं आता
क्योंकि लोग स्वस्थ बने रहते हैं।
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